एक प्रयास
संस्कृति के साथ जुड़ने का...
एक प्रयोग
सादा जीवन उच्च विचार का...
एक चिंतन
सबके साथ सबके विकास का...
एक विश्वास
जियो और जीने दो के सिद्धांत का...
एक अवसर
प्रकृति के साथ रिश्ता निभाने का...
एक एहसास
अपनेपन का...
यह है एक प्रयास,
संस्कृति के साथ जुड़ने का
यह एक अवसर है,
प्रकृति के साथ रिश्ता निभाने का
एक प्रयोग है,
सादा जीवन उच्च विचार का
एक चिंतन है,
सबके साथ सबके विकास का
विश्व कल्याण की भावना जिनका धर्म है,
मन और इंद्रियों को जीतना जिनकी साधना है और
आत्मा का अन्वेषण जिनका लक्ष्य है,
ऐसे युगपुरुष जैन दिगंबराचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज की चिंतनधारा से पोषित है-
चल-चरखा महिला प्रशिक्षण व रोजगार केंद्र।
विश्व कल्याण की भावना जिनका धर्म है,
मन और इंद्रियों को जीतना जिनकी साधना है और
आत्मा का अन्वेषण जिनका लक्ष्य है,
ऐसे युग पुरुष दिगंबराचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज की चिंतन धारा से पोषित है चल चरखा महिला प्रशिक्षण व रोजगार केंद्र।
चल-चरखा महिला प्रशिक्षण केंद्रों में प्रतिभामंडल की प्रशिक्षित, विदुषी, भारतीय कलाओं में निष्णात समर्पित बाल ब्रह्मचारिणी बहनें अहर्निष सेवाएं प्रदान कर महिलाओं को हथकरघा तथा हस्तशिल्प का प्रशिक्षण व रोजगार प्रदान करती हैं।
चल-चरखा महिला प्रशिक्षण व रोजगार केंद्रों में हजारों ग्रामीण, आदिवासी महिलाएं अल्प समय में हथकरघा पर बुनाई, आरी-जरदोसी, हाथों की कढ़ाई, सिलाई आदि पारंपरिक कलाओं का प्रशिक्षण प्राप्त कर, प्रकृति रक्षक आरोग्यवर्धक वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए संकल्पित हैं।
बच्चों के ऊपर से पिता का साया उठना, उनकी शिक्षा, भोजन उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति होना सब कठिन था। लेकिन हथकरघा ने जीवन को नई दिशा दी। आज मैं स्वयं अपने बच्चों के साथ-साथ अपने माता-पिता की भी देखभाल करती हूं। मुझे गर्व है, मैं स्वावलंबी आत्मनिर्भर जीवन जी रही हूं।
-ममता सुर्जे
मैं पिण्डरुखी, डिंडोरी की रहनेवाली हूँ। हमारे गाँव में बारिश ज्यादा होने के कारण हमारी खेती में फसल का बहुत नुकसान होता है, इससे हमारे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में समस्या होती है, किन्तु अब हथकरघा से हमें सहयोग मिला है। मैं प्रतिदिन 300-350 रुपये कमा लेती हूँ। अब हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी सुलभ हो गयी है।
– सुखवति सुरजे, पिण्डरुखी
केंद्र
महिलाएँ प्रशिक्षित
हथकरघा संचालित
चल-चरखा मात्र प्रशिक्षण केंद्र ही नहीं
अपितु यह एक चिंतन है राष्ट्रहित चिंतक जैनाचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज का,
साधन है स्वावलंबी स्वाश्रित जीवन का,
दर्शन है सत्य और अहिंसा का
एवं
निर्माण है ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाले समृद्ध आत्मनिर्भर भारत का…