हमारे शिल्पी
रोटी न मॉंगो,
रोटी बनाना सीखो,
खिलाके खाओ।
-जैन दिगंबराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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कुशल हाथों की सफलता
खुद के हाथों से खुद का विकास करना यही आत्मनिर्भरता की पहचान है , राष्ट्र निर्माण में योगदान है और हथकरघा, हस्तशिल्प इसके लिए वरदान है |
— आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज
चल-चरखा महिला प्रशिक्षण केन्द्र में प्रत्येक महिला शाकाहार व सात्विक जीवन का संकल्प लेकर कार्यरत हैं। हथकरघा के वस्त्र मात्र धागों का ताना- बाना नहीं, बल्कि महिलाओं के बुने हुए सपने हैं। यहाँ महिलाएँ, आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, आत्मबल व आत्मसुरक्षा के साथ अपना जीवन-यापन कर रहीं हैं।
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पूरा परिवार एक साथ रह पा रहा है!
मेरे पति पैसे कमाने के लिए शहर जाने के लिए मजबूर थे। परिवार बिखरने के डर से हम और हमारे बच्चे बहुत दुखी थे। गुरु जी के आशीर्वाद से मैंने चल चरखा में आकर हथकरघा सीखा और हमारे घर पर भी लगवाया और अपने पति को भी सिखाया। आज हम दोनों मिलकर 30 से 35 हजार रुपए महीने के कमा लेते हैं । पूरा परिवार एक साथ रह पा रहा है । गुरुजी आपका आशीर्वाद है, आपका यह उपकार कभी नहीं भूलेंगे।
स्वावलंबी आत्मनिर्भर जीवन!
जंगल जाना, लकड़ी काटना, पानी भरना, यही हमारे जीवन का रोज का क्रम था। चल चरखा, कारोपानी से जुड़ने के बाद स्वयं हथकरघा सीखकर गांव की अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षण देती हूँ। बहुत अच्छा लगता हैं ये सोचकर की हम दूसरो के जीवन को भी सहारा दें पा रहे हैं। ऐसा अच्छा जीवन देने के लिए आचार्य श्री के चरणों में बारम्बार नमोस्तु।
-प्रमोद सूरजे
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सही दिशा मिली...
मैं दह-दहा में एक गरीब परिवार की रहने वाली, रोज 8 किलोमीटर साइकिल से चल चरखा केंद्र पर आती हूं। यहां साड़ी बनाकर अब घर परिवार का खर्च अच्छे से निकल जाता है। गुरुदेव की छाया में कार्य करने से बहुत सुकून मिलता है। अब घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं है। साथ में जीवन को सही दिशा मिली है।
सात्विक आजीविका का अवसर!
चार छोटे-छोटे बच्चों और सासू मां के साथ घर में रहती हूं। पति के देहांत के बाद घर चलाने के लिए बीड़ी बनाने का कार्य करती थी, आज चल चरखा केंद्र में ऐसे वस्त्र बनाती हूँ, जिसे मंदिर में भगवान की पूजन में उपयोग किया जाता हैं। हम बीड़ी बनाकर लोगों को जहर दे रहे थे और अब शुद्ध कपडे के द्वारा उन्हें धर्म से जोड़ रहे हैं। गुरुजी आपका बहुत बड़ा उपकार है।
-उर्मिला कोरी
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ज़िन्दगी सुलभ हो गयी!
मैं पिण्डरुखी, डिंडोरी की रहनेवाली हूँ। हमारे गाँव में बारिश ज्यादा होने के कारण हमारी फसल का बहुत नुकसान होता है, इससे हमारे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में समस्या होती है| किन्तु अब हथकरघा से हमें सहयोग मिला है, मैं प्रतिदिन 300-350 रुपये धनोपार्जन कर लेती हूँ। अब हमारी ज़िन्दगी सुलभ हो गयी है। गुरुदेव के चरणों में बारम्बार नमन …
-सुखवति सुरजे, पिण्डरुखी
स्वावलंबी आत्मनिर्भर जीवन!
बच्चों के ऊपर से पिता का साया उठना, उनकी शिक्षा, भोजन उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति होना सब कठिन था। लेकिन हथकरघा ने जीवन को नई दिशा दी। आज मैं स्वयं अपने बच्चों के साथ-साथ अपने माता-पिता की भी देखभाल करती हूं। मुझे गर्व है, मैं स्वावलंबी और आत्मनिर्भर जीवन जी रही हूं।
-ममता सुर्जे
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चरखा बना सहारा
यहाँ बहुत अच्छा लगता है
आचार्य श्री जी कलयुग के राम
महिला कैदियों के पत्र- गुरुजी के नाम
आचार्य गुरुजी को मेरा प्रणाम। मैं यहाँ तिहाड़ जेल में पिछले दस सालों से सजा काट रहीं हूँ। मैं आचार्य श्री जी का तहेदिल से शुक्रियादा करती हूँ कि उन्होंने हमारे बारे में सोचा। इस चल-चरखा की शुरुआत से हमारे पैसे की तंगी को दूर करने का सोचा।
महिला कैदी
तिहाड़ जेल
I don’t want to stop it(handloom) here, in jail only. I want to bring it to my country also. I want to continue to be vegetarian once out of jail.
अंतर्राष्ट्रीय महिला
तिहाड़ जेल
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जिंदगी हुई खुशहाल...
मैं चल चरखा केंद्र, नारी में कपड़ा बुनती हूँ। इसके पहले मैं अपनी जिंदगी से हार गई थी, दवाई के लिए भी दूसरों के सामने हाथ फैलाने पड़ते थे। आज 600₹ प्रतिदिन कमा रही हूँ। आचार्य श्री ब्रह्मांड के देवता है। उन्होंने हम दुखी बेटियों की जिंदगी खुशहाल कर दी।
-प्रमिला साहू
स्वाश्रित जीवन
पति की शराब पीने की आदत से घर में अशांति रहती थी, पैसा भी नहीं बचता था। तभी गुरुदेव की कृपा हम गरीब बेटियों पर पड़ी। चल चरखा, नारी(छत्तीसगढ़) में चंदेरी बूटी साड़ियों को बुनकर प्रतिदिन 600₹ कमाती हूँ। स्वाश्रित होकर जीवन निर्वाह कर रही हूँ। आचार्य भगवन आपकी कृपा से हमारा पूरा परिवार तिर गया। आपके चरणों में नमन।
-प्रमिला यादव
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शरण मिली!
मेरी 4 नन्ही बेटियों के सिर से पिता का साया उठ गया था । जब ससुराल वालो ने खाली हाथ बाहर कर दिया, तो जीवन अंत करने का भी ख्याल मन में आया। आचार्य श्री की कृपा से चल चरखा केंद्र , कारोपानी में हमें शरण मिली। अब मैं स्वाभिमान के साथ मेरी बेटियों को पाल रही हूँ।
-सुहागा नागेश
हथकरघा पर काम करके शिक्षा पूर्ण की
हथकरघा ने मुझे जीवन का लक्ष्य दिया है। चल-चरखा केंद्र में हथकरघा पर काम करते-करते मैंने अपनी शिक्षा पूर्ण की और आज मैं एक स्वाश्रित जीवन जी रही हूँ। प्रतिदिन मुझे 500 रुपये वेतन मिलता है। मैं अत्यंत संतुष्ट हूँ।
-मानसी जैन
बी.एस.सी., बी.एड. (23 वर्ष)
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जीवन में सकारात्मक परिवर्तन!
मेरी उम्र का भले ही मुझे पता ना हो लेकिन आपकी लंबी उम्र हो इस भावना से यह शुद्ध धागे के वस्तुओं को बुनती हूँ। सभी स्वस्थ और निरोगी हो यही भावना है। धन्यवाद चल-चरखा जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए।
-उदसिया
नई रोशनी ने दी दस्तक!
खुशियों का सूरज पति से तलाक होने पर भला ही डूब गया हो लेकिन हथकरघा में काम करने के बाद जीवन में नई रोशनी ने दस्तक दी । आज मैं दोनों बच्चों का भी पालन पोषण कर रही हूं और आगे की पढ़ाई भी प्रारंभ कर दी है। नमन हो ऐसे गुरु को जिन्होंने हमारे बारे में सोचा।
– सरस्वती सुर्जे
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